आज हम लॉज ऑफ नेचर में एक एक प्राचीन और हमारे सात अजूबों में से एक स्टोनहेंज के निर्माण से जुड़ी कुछ रहस्यमई शक्तियां की बात करने जा रहे हैं, जो हमे परग्रहियों के अस्तित्व के बारे में बताते है, जिसे हम नकार नहीं सकते।
स्टोनहेंज दुनिया का सबसे मशहूर मेगालिथिक स्ट्रक्चर,इसे इसका नाम मटेरियल पत्थर से मिला,साथ ही शब्द हेंज से,जिसका इस्तेमाल बीच में से समतल इलाके के चारो ओर फैले गोलाकार के लिए किया जाता है।
स्टोनहेंज,अभी जो है वो असली स्मारक का सिर्फ 25% प्रतिशत ही बचा है बाकी का 75% तबाह हो चुका है,हमेशा के लिए, शुरुआत में ये 60 बड़े ब्लॉक से बना था,जो एक परफेक्ट सर्कल बनाते थे,किन्तु सवाल ये है कि वो कौन है जिसने इतना मुश्किल काम किया और क्यूं?हालांकि सदियों से खोज कर्ता इसके बनने का निश्चित समय तय नहीं कर पाए,पर ऐसा माना जाता है कि स्टोनहेंज की बनावट कई हजार साल के दौरान अलग अलग समय में की गई थी। माना जाता है कि स्टोनहेंज के शुरुआती बनावट में सिर्फ तीन बड़े लकड़ी के ब्लॉक थे, जो अब कार पार्क के एरिया में आता है और इन पर पेंट किया गया है,ये कम से कम 10 हजार साल पुराने माने जाते हैं।स्टोनहेंज के अगले हिस्से का काम लगभग 3200 से 3400BC में किया गया था।जब चारो तरफ जमीन में आकार दिया गया,तब वहां कुछ ही पत्थर थे,फिर 100 सालो बाद यहां ब्लू स्टोन लाए गए,ये पत्थर यहां कई सौ किलमीटर दूर वेल्स के प्रिसले पर्वत से लाए गए थे।यहां के और बड़े पत्थर द ग्रेट
सैलसिन स्टोन पास के इलाके से लाए गए थे,जो करीब तीस किलमीटर दूर थी,पर कईओ का वजन तो 50 टन तक है।
हजारों टन वजनी पत्थरों को जमीन से काट कर 100km दूर तक लाया गया,क्या प्राचीन काल के लोगो ने वाकई इन विशाल पत्थरों के साथ,इस नामुमकिन काम को अंजाम दिया होगा,ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने या तो रोलर का इस्तेमाल किया होगा या फिर पेड़ के तनो का,पर उन जगहों को देखें जहां उन्हे जाना पड़ा होगा,तो ये नामुमकिन लगता है।कई ब्रिटिश स्कीम ने इस काम को फिर से करने का सोचा,किन्तु सवाल ये था कि जिन लोगो ने भी स्टोनहेंज को बनाया था उन्होंने वेल्स और पहाड़ियों के बीच के घाटियों और नदियों को कैसे पार किया होगा ,वो भी इतने भारी पत्थरों के साथ आखिर कैसे।
स्टोनहेंज के इन प्रश्नों के जवाब हमे एक और जगह मिलता है,वो है लीजेंड आफ आर्थर में,जिसके मुताबिक स्टोनहेंज के पत्थरों को आयरलैंड से मर्लिन लेकर आया था,जो किंग आर्थर का मैजिशियन था,उसमे लिखा है की मर्लिन उन सभी पत्थरों को हवा में उड़ा लेकर आया था,और फिर उन्हें धकेल कर लाया था वो भी अपने हाथो से,और इसी तरह उसने वेल्स से हेंज तक का लंबा सफर तय किया था।बीसवीं सदी के मशहूर लेखक,और इतिहासकार जॉन मर्केल ने मर्लिन,आर्थर और उनके ट्रेडिशन के विषय में 40 से ज्यादा किताबें लिखी हैं
मर्केल ने पूरा जोर दिया है कि मर्लिन का अस्तित्व वाकई था,और उन्होने ये भी कहा है कि मर्लिन एक जबरदस्त शक्तियों वाला दूसरी दुनिया का प्राणी था। जो धरती के लोगो पर अपनी शक्ति को और मजबूत करके धरती के लोगो के ज़िन्दगी को एक बेहतर दिशा देने आए थे।
क्या हम सच मुच मर्लिन की कहानियों को प्राचीन इतिहास में इंसानों से परग्रहियों के साथ रिश्ते की सबूत मान सकते हैं।साथ ही इसका भी की उन्होंने ऐसी एडवांस्ड टेक्नोलोजी दी,जिससे ऐसे मोनोलिथ को इनके जगह पर लाकर रखा गया।
अगर ऐसा है,तो इन स्मारकों को बनाने के लिए सिर्फ पत्थरों का ही इस्तेमाल क्यूं किया गया।
ऐसा हो सकता है कि वो इसी के जरिए अपने देवता को खुश करना चाहते थे,ऐसा अक्सर देखा गया है कि लोग पत्थर को ही ईश्वर मान लेते हैं,क्यूंकि पत्थर का अस्तित्व भी युगों युगों तक के लिए होता है।ये लोग दिखाना चाहते थे कि उनकी संस्कृति कितनी बेमिसाल और मजबूत थी और इसके लिए पत्थर से बढ़िया और कुछ नहीं हो सकता।
पत्थरों की अपनी ही खूबियां और खासियत होती है जैसे की मजबूती कठोरता और कईओ में क्वार्ट्ज क्रिस्टल जैसी पत्थरों का काफी ज्यादा इस्तेमाल हुआ है।ब्लू स्टोन जिनसे स्टोनहेंज का आउटर और इन्नर सर्कल बना है उनमें क्वार्ट्ज क्रिस्टल का इस्तेमाल हुआ है। इन पत्थरों में ये खासियत होती है कि ये पत्थर इंसानी शरीर पर अपना असर दिखाती हैं,उनमें हीलिंग प्रॉपर्टी होती है। इनमे ऐसी वाइब्रेशन होती है कि पत्थर को पकड़ने वाले पर अच्छा असर पड़ता है,और तो और स्टोनहेंज को एक हीलिंग प्लेस माना जाता था,जहां पर दूर दूर से लोग अपने बीमारी या दर्द को ठीक करने आया करते थे।
कुछ शोधकर्ताओं ने स्टोनहेंज के एलियन से संबंधित होने का भी प्रमाण उसके अलग तरह में बनावट के लिए दिये है,हर पत्थर की सटीक पोजिशन और एक दूसरे से दूरी इस मेगालिथ की ओर इशारा करती है।अगर उपर से देखें तो स्टोनहेंज हमारे सौर मंडल की तरह बनावट में दिखाई देता है।ये सभी कंसेट्रिक सर्कल हमारे सोलर सिस्टम के एक एक ग्रह हैं।उन्हे ये सब कैसे पता प्राचीन लेखो और परंपराओं में कहा गया है कि ये ज्ञान हमारे पूर्वजों को किसी और ने नहीं बल्कि एलियन ने दिया था,यानी ईश्वर ने। कुछ लोगों का मानना है कि स्टोनहेंज एक तरह का कैलेंडर मार्कर था,जिससे प्राचीन लोगो को ये पता चले कि बीज बोन का सही समय कब है और कुछ लोगो का मानना है कि ये एक तरह का खगोलीय कैलेंडर है,जो ये देखने के लिए बनाया गया था कि आसमान से खतरनाक उल्का कि बारिश कब होने वाली है। उस समय में ऐसा कौन होगा जिसे खगोलीय जानकारियों की जरुरत थी,कहीं वो दूसरे दुनिया के जीव यानी एलियंस तो नहीं थे,या हो सकता है कि वो कोई बुद्धिजीवी थे जिसे एलियन यहां धरती पर तैयार कर रहे थे, उनकी ट्रैनिंग कर रहे थे,ताकि वो तारों को पढ़ सके,ब्रह्मांड को पढ़ सके चांद और ग्रहण को भी।
क्या ये मुमकिन है कि दूसरी दुनिया के लोगो ने स्टोनहेंज को सिर्फ इसलिए बनाया हो ताकि प्राचीन इंसान तारों के बारे में डाटा इकट्ठा कर सके,अगर हां तो क्यूं,ये खगोलीय ज्ञान देने के पीछे उनका क्या मकसद हो सकता है।
हो सकता है स्टोनहेंज कोई हवाई अड्डा हो जहां पर अंतरिक्ष यान आकर लैंड करता हो,इस सर्कुलर स्टोनहेंज के ऊपर हो सकता है कि कोई यूएफओ आता हो और उसके ऊपर रुकता हो और अंदर से एलियन बाहर आते हो,और एलियन इसका प्रयोग एक एयर पोर्ट कि तरह करते हों। यदि ये सच है तो अब एलियन पहले की तरह हमारे धरती पर क्यूं नहीं आतें है, अलिएनो को हमारी दुनिया में आने की क्या जरूरत पड़ी।वो हमे क्या बताना चाहते थे,क्या हम उनके बताए हुए रास्ते पर चल रहे हैं या नहीं,यदि नहीं तो हम कहां जा रहे हैं।
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