आज हम लॉज ऑफ नेचर में एक ऐसे क्वेशचन की बात करने जा रहे है,जिसका उत्तर शायद ही किसी को सटीक तरीके से पता है,और ये एस्ट्रोफिजिक्स का एक बहुत ही मजेदार सवाल है कि आखिर कोई प्लैनेट किसी स्टार के चारो तरफ एलिप्टिकल ऑर्बिट में क्यूं रिवोल्व करता है।
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लेकिन जब कोई गणितीय डेरिवेशन की बात आती है तब हम अक्सर प्लैनेट के ऑर्बिट को एक परफेक्ट सर्कल मानते है, ग्रेविटेशन चैप्टर में सेटेलाइट की ऑर्बिटल वेलोसिटी का डेरिवेशन करने के लिए हम प्लैनेट और सेटेलाइट के ग्रैविटेशनल फोर्स को उस प्लैनेट के सेट्रीपेटल फोर्स के इक्वल में रखते हैं और वेलोसिटी को निकाल लेते है,वो भी आसानी से, शायद हम ऐसा इसलिए करते है क्यूंकी हमारा कैलकुलेशन करना आसान हो जाता है।
क्या सर्कुलर ऑर्बिट और एलिपटिकल ऑर्बिट में कोई अंतर नहीं है,यदि है तो कहीं न कहीं हमारा कैलकुलेशन जरूर गलत है,क्यूंकि एक एलिप्स और सर्कल के एक्वेशन में काफी अंतर होता है और अलग भी होता है,आप इस अंतर को नीचे साफ देख सकते हैं।
खैर ये छोड़िए आइए हम बात करते है कि आखिर एक प्लैनेट किसी स्टार के चारो तरफ एलिप्टिकल ऑर्बिट में क्यूं घूमता है।
वो कंप्लीट सर्कुलर पाथ फॉलो क्यूं नहीं करता,आप इसके बारे में क्या सोचते हैं नीचे कॉमेंट कर जरूर बताए।
इसका एंसर देने से पहले आप ये सोचिए की इस ब्रह्मांड का सबसे सर्वोपरि नियम क्या है,ये ब्रह्मांड या ये प्रकृति का क्या काम है।
यदि हम इसके नियम की बात करें तो इस ब्रह्मांड का सिर्फ एक ही नियम है और वो है बैलेंस और स्टेबिलिटी बनाए रखना,या यूं कह लीजिए की इस ब्रह्मांड का हर वस्तु स्टेबल होना चाहता है,चाहे वह कोई प्लैनेट हो या कोई इंसान सब स्टेबल होना चाहते हैं।
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अब ये देखिए कि स्टेबल होने के लिए किस चीज की जरूरत होती है,हम किसी वस्तु को स्टेबल कब कहते है,हम किसी वस्तु को स्टेबल तब कहते हैं जब वो वस्तु बहुत कम अपनी एनर्जी को वेस्ट करे।इसीलिए मोस्टली प्लैनेट एलोंगेटेड सर्कल में मूव करती है,जिसको हम एल्लिप्स भी कहते हैं। इलोंगेटेड सर्कल और सर्कल ही सिर्फ एक ऐसे फिगर है जो इस ब्रह्मांड में काफी ज्यादा स्टेबल माने जाते हैं,क्यूंकि ये सबस कम विस्थापन देते हैं,इसलिए ये सबसे कम एनर्जी वेस्ट करते हैं।
लेकिन बात यहां पर आके रुक जाती है कि इलिप्स से कहीं ज्यादा स्टेबल तो सर्कल है तक फिर ये एलीप्स में ही क्यूं।
ये बात तो ठीक है कि ऐलीप्स भी कम एनर्जी वेस्ट करते हैं,किन्तु सर्कल सबसे कम वेस्ट करता है।
कहीं न कहीं हम इस कांसेप्ट को एनर्जी स्टैबिलाइजेशन से एक्सप्लेन नहीं कर सकते,हमे कुछ अलग तरीके से सोचना होगा,तो आइए इसको कुछ अलग तरीके से समझने की कोशिश करते हैं।
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इसको समझने के लिए हमे 13.8 अरब साल पीछे जाना होगा, जब हमारा ब्रह्मांड बस बनाने ही वाला था, तो आइए चलते हैं,बिग बैंग को देखने
देखिए वो बिग बैंग के धमाके को जिससे अभी हमारी ये दुनिया बनने वाली है।
इस बिग बैंग के धमाके से ही हमारे ब्रह्मांड में काफी ज्यादा मात्रा में छोटे बड़े मास के टुकड़े इस ब्रह्मांड में लाइट के स्पीड से एक दूसरे से दूर जाने लग गए,किन्तु खास बात ये है कि उन सभी छोटे बड़े टुकड़ों का रिलेटिव स्पीड कॉन्स्टेंट है।
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ये सारे मास जो बिग बैंग के धमाके से बने वो सब इस ब्रह्मांड में फैल गए,अब आपको यहां से ध्यान से पढ़ने कि जरूरत है।
अल्बर्ट आइंस्टीन की जनरल थिअरी ऑफ रेलेटीविटी ये कहती है कि ये ब्रह्मांड एक स्पेस टाइम का फैब्रिक है ,जो बिल्कुल एक ट्रंपुलिन जैसा ही है,इस फैब्रिक में जिस भी ऑब्जेक्ट का मास ज्यादा होगा वो इस फैब्रिक के ट्रंपुलीन में ज्यादा अन्दर तक धसेगा और ज्यादा स्लोप बनाएगा।
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इसी प्रकार हमारा सन भी अपने चारो तरफ एक बहुत बड़ा स्लोप बना रहा है,क्यूंकि सन का मास बहुत ज्यादा है,उसके ग्रहों के मुकाबले,इसका मतलब है कि हमारे सोलर सिस्टम के सारे प्लैनेट सन के इसी स्लोप में फ्री फॉल कर रहे है,यदि ये फ्री फॉल कर रहे हैं तब हमे ये रेवोल्व करता क्यूं दिखाई देता है,वो भी एल्लिप्टिकल।आइए इन दोनों घटनाओं को समझते हैं।
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अभी जो मैंने कहा कि हमारे सारे ग्रहों का सन के स्लोप में फ्री फॉल हो रहा है, ये बात बिल्कुल सही है लेकिन उनका फ्री फॉल हो कैसे रहा है,उनका फ्री फॉल ऐसे बिल्कुल नहीं ही हो रहा है जैसे हम किसी छोटे से पत्थर को किसी बिल में डाल देते हैं,या यूं कह लीजिए कि उनका फ्री फॉल सन कि तरफ स्ट्रेट लाइन में नहीं हो रहा है।
अभी मैंने ऊपर एक बात कही थी कि हमारे ब्रह्मांड के सभी ऑब्जेक्ट स्ट्रेट लाइन में मोशन कर रहे हैं किन्तु उनका रिलेटिव वेलोसीटी ज़ीरो है।इसका मतलब वो एक दूसरे के लिए रेस्ट में हैं।किन्तु उनके बीच का सेपरेशन डिस्टेंस जरूर बढ़ रहा है।
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यदि इस ब्रह्मांड के सारे ऑब्जेक्ट स्ट्रेट लाइन में मोशन कर रहे हैं तब उन में से कोई भी किसी के स्लोप में सीधे एंटर नहीं कर सकता,सीधे भी कर सकता है किन्तु उसकी प्रोबेबिलिटी बहुत कम है,इसीलिए वो मास उस स्लोप के स्पर्श रेखा के लंबवत लगभग ना के बराबर ही एंटर करती है,अधिकांश मासेस स्लोप में किसी न किसी एंगल से एंटर करती है,जो 90° से कम होता है।यही एंगल उसे एलिप्टिकल ऑर्बिट देता है,कैसे? आइए जानते हैं,
इस ब्रह्मांड में हर ऑब्जेक्ट की वेलोसिटी स्ट्रेट लाइन में हैं,पर जैसे ही वह किसी स्लोप से टकराती है तो वह थोड़ा उस स्लोप की तरफ मुड़ जाती है,और वह उस स्लोप में ट्रैवल करने लग जाती है,और वह उसी वीलोसिटी से ट्रैवल करना चाहती है जिस तरह से वो ओपन स्पेस में ट्रैवल कर रही थी।
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वो ऐसा करती भी है इसलिए वह शुरुआत में काफी तेजी से कर्व पाथ बनाते हुए नीचे जाती है और नीचे से एक कर्व लेते हुए जैसे ही ऑब्जेक्ट उपर की तरफ आते हैं,तब उसकी स्पीड स्लो हो जाती है,और ऊपर से एक कर्व लेते हुए फिर नीचे तेज़ी से आती है,और नीचे से एक कर्व लेते हुए फिर ऊपर आती है और फिर उसकी स्पीड कम हो जाती हैं यही प्रक्रिया बार बार होता है और इससे जो पाथ फॉलो होता है वो एक ऐलिप्स होता है,बिल्कुल ऐसा ही हमारे प्लैनेट के साथ भी हो रहा है सन के स्लोप में,नीचे एक वीडियो दी जा रही है जहां पर आप ऐलिप्स के फॉर्मेशन को देख और समझ सकते हैं।
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