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“लॉज ऑफ नेचर” कहता है –
प्रकृति क्या है?
किसी राष्ट्र या देश को आदर्श राष्ट्र या देश बनाने के लिए निःसंदेह एक आदर्श कानून व्यवस्था की आवश्यकता होती है, जिसके नजर में उस देश में रहने वाला सूक्ष्म जीव से लेकर विशालकाय जीव तक सभी एक समान होते है।
किसी देश का स्वामी एक मनुष्य हो सकता है, इस पृथ्वी का स्वामी भी एक मनुष्य हो सकता है, किन्तु क्या इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का स्वामी भी एक मनुष्य हो सकता है, शायद नहीं ….
अब यहां पर एक प्रश्न है उठता है, कि क्या इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को भी किसी स्वामी की आवश्यकता है?
यदि किसी देश को स्वामी कि आवश्यकता है, यदि पृथ्वी को किसी स्वामी की आवश्यकता है, तो यकीनन इस ब्रह्मांड को भी एक स्वामी कि आवश्यकता है। इस ब्रह्मांड का स्वामी जो कोई भी है, उसके लिए ये पूरा ब्रह्मांड एक देश जैसा है, जिसके भीतर हमारे जैसे असंख्य जीव रह रहे है, इस ब्रह्मांड में हम अकेले नहीं है। यदि ये पूरा ब्रह्मांड एक देश है, तो निश्चित ही इस देश का भी एक नियम होगा कोई कानून होगा।
यदि हम किसी देश की बात करें तो वहां कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए सैनिकों को तैनात किया जा सकता है, और किया भी जाता है।
किन्तु क्या इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का स्वामी भी अपने देश(ब्रह्मांड) में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए सैनिकों को तैनात करता है। क्या आपने कभी अंतरिक्ष में सैनिकों को खड़े देखा है, आपने नहीं देखा होगा , इसलिए इस ब्रह्मांड में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए किसी सैनिक बल की तैनाती नहीं की जाती है।
ब्रह्मांड के संदर्भ में ये सैनिक थोड़े अलग किस्म के होते है। इस ब्रह्मांड का स्वामी जो कोई भी है , वो बहुत ही चतुर है। उसने इस ब्रह्मांड में सिर्फ एक ही सैनिक को तैनात किया हुआ है, और उस सैनिक की विशेषता यह है कि वह अदृश्य है , उसको देखा नहीं जा सकता ,बस उसके प्रभाव को महसूस किया जा सकता है, और ये पूरा ब्रह्मांड उसके प्रभाव से प्रभावित है , या यूं कह लीजिए कि उस सैनिक का नियंत्रण इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड पर है और वो एक जैसा है।
हम जिस सैनिक की बात कर रहे है, उसका नाम प्रकृति है।
प्रकृति ही वो अदृश्य सैनिक है , जिसने इस ब्रह्मांड को अपने नियंत्रण में लिए हुए है, और जो इस ब्रह्मांड में कानून व्यवस्था बनाए रखती है।
जिन नियमों के आधार पर ये प्रकृति इस ब्रह्मांड में कानून व्यवस्था बनाए रखती है , उसे प्रकृति के नियम कहते है।
इस नियम से इस ब्रह्मांड का कोई भी जीव बच नहीं सकता है, इस ब्रह्मांड का हर वस्तु चाहे वो जीवित हो या निर्जीव, वो ना चाहते हुए भी इस प्रकृति के नियंत्रण में है , और वो मृत्यु के बाद भी का कानून व्यवस्था/नियम से बच नहीं पाता। इस ब्रह्मांड में जितने भी वस्तु है, चाहे वो भौतिक हो या अभौतिक सभी प्रकृति के नियमों से ही काम करते है , कोई भी वस्तु/जीव स्वयं की इच्छा से कुछ भी नहीं कर सकता। आपके सोचने पर भी इस प्रकृति का नियंत्रण है, आप कुछ भी ऐसा नहीं सोच सकते जो इस ब्रह्मांड से परे हो, आप सिर्फ वही सोच सकते है, जो इस ब्रह्मांड में है , अर्थात आप कभी भी असंभव चीज़े नहीं सोच सकते, आप जो कुछ भी सोचते है वो इस ब्रह्मांड में कहीं न कहीं जरूर होती है , और वो संभव होती है। इस ब्रह्मांड में रहने वाला हर जीव हर वस्तु की जानकारी इस ब्रह्मांड में जमा है, जो जन्म लेे चुका है, जो आने वाले कालो में जन्म लेने वाला है, जो मर रहा है या मरने वाला है, परमाणु से लेकर विशालकाय पिंड तक , सभी की जानकारी इस ब्रह्मांड में जमा है , इस ब्रह्मांड में कोई भी खुद से कुछ सोच या कुछ कर नहीं सकता, सब कुछ प्रकृति के नियंत्रण में है , ये पूरा ब्रह्मांड प्रकृति के नियंत्रण में है।
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हर सैनिक के कुछ न कुछ गुण होते है, उसी तरह इस प्रकृति के भी कुछ गुण हैं। मुख्यत इस प्रकृति के तीन गुण होते है, और इन तीनों गुणों के अन्तर्गत ही इस ब्रह्मांड में होने वाली सभी क्रियाएं आती है।
प्रकृति के तीन गुण
इस भौतिक प्रकृति तीन गुणों से युक्त है, ये तीन गुण हैं – सतो गुण, रजो गुण और तमो गुण। जब कोई भी शाश्वत जीव इस प्रकृति के संसर्ग में आता है तो वह हमेशा के लिए इन गुणों से बंध जाता है। इस भौतिक ब्रह्मांड में रहने वाला हर जीव मुख्यत दो प्रकार के वस्तुओं से बना होता है, वो है – भौतिक वस्तु जैसे कि उसका शरीर (पांच भौतिक तत्वों से निर्मित है) और आध्यात्मिक वस्तु जैसे कि उसका आत्मा। ये आत्मा एक दिव्य वस्तु(ऊर्जा) है, जिसको किसी भी प्रकार की भौतिक वस्तुओं की इच्छा नहीं होती, ईश्वर का अंश होने की वजह से वो स्वयं परिपूर्ण है।
किन्तु फिर भी जब कोई भौतिक जीव इस भौतिक दुनिया में जन्म लेता है, तो वह प्रकृति के तीन गुणों वाले माया के वश में होकर रह जाता है, और उसी के प्रभाव में कार्य करता है, क्यूंकि कोई भी जीव प्रकृति के नियमों से बच नहीं सकता।
इस ब्रह्मांड में रहने वाले हर जीवों को प्रकृति के विभिन्न अवस्थाओं के अनुसार अलग अलग शरीर प्राप्त है, और वे उसी प्रकृति के निर्देशानुसार अपने कर्म करते रहते है, और वे अपने कर्मो के आधार पर ही सुख दुख के भोक्ता है।
अब मनुष्य प्रकृति के जिन तीन गुणों के माया में वशीभूत होकर कर्म करते रहते हैं, उनमें सबसे पहला गुण है, सतो गुण।
सतो गुण
सतोगुण अन्य गुणों की अपेक्षा अधिक शुद्ध होने के कारण प्रकाश प्रदान करता है , और मनुष्यों को सारे पाप कर्मों से मुक्त करता है। जो लोग इस गुण में होते है, वे सुख और ज्ञान के भाव से बंध जाते हैं।
प्रकृति के माया में बद्ध होने वाले जीव कई प्रकार के होते है, कोई ज्यादा सुखी है , तो कोई बहुत ज्यादा दुखी, कोई अत्यंत कर्मठ है तो कोई असहाय। व्यक्ति के भीतर इस प्रकार के मनोभाव और इन मनोभावों के बजह से होने वाली दशा, प्रकृति में जीव के बद्ध होने के कारण स्वरूप है। इस प्रकृति में सतोगुण को इसलिए विकसित किया गया है, क्यूंकि इस भौतिक जगत में रहने वाले हर प्राणी के विचार एक जैसे नहीं होते, कोई शास्त्रों और वेदों व धर्मो के अनुसार जीवन यापन करता है तो कोई कोई इसके विपरीत कार्य करता है, तो कोई वासना और तृष्णा में अपने जीवन को जीता है।
जो जीव सतोगुणी होता है, वो जीव अन्य बद्घ जिवियो के तुलना में अधिक चतुर हो जाता है या महसूस करता है। सतगुणी व्यक्ति को कष्ट उतना पीड़ित नहीं करते जितना औरो को करते है , और उनके भीतर भौतिक ज्ञान में प्रगति करने की सूझ बुझ होती है।
इनके प्रतिनिधि ब्राह्मण है, जिन्हें सतोगुणी माना जाता है। इन व्यक्तियों को सुख का एहसास होता है , ऐसा इसलिए क्योंकि इस गुण में रहने वाले लोगों को प्रायः पपकर्मो से मुक्त माना जाता है।
वैदिक साहित्यों में भी यह कहा गया है कि, सतोगुण का अर्थ ही है, अधिक ज्ञान और सुख का अधिकाधिक अनुभव करना।
इस सतोगुण में रहने वाले व्यक्तियों को एक हानी होती है, जिनका प्रायः उनको पता नहीं होता। जब मनुष्य इस गुण में होता है, तब उन्हें ऐसा लगता है , वे ज्ञान के मामलों में सबसे आगे है , औरो के अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ हैं। इस प्रकार वे बद्ध हो जाते है , इनके कुछ उदाहरण है, दार्शनिक और वैज्ञानिक। इनमे से अधिकतर लोगों को अपने ज्ञान पर गर्व होता है, और वे अपने रहन सहन को काफी ज्यादा सुधार लेते हैं , जिनके वजह से उन्हें सुख का अनुभव होता है। बद्ध जीवन में अधिक सुख का ये भाव उन्हे भौतिक प्रकृति के गुणों से बांध देता है। जिसके वजह से उन्हे सतोगुण में रहते हुए कर्म करने में अधिक आनंद मिलता है, और वे इस प्रकार के कर्म से आसक्त हो जाते है। जब तक उन्हे इस प्रकार कर्म करने का आकर्षण बना रहता है , तब तक उन्हे इस भौतिक जगत में जन्म लेते हुए शरीर धारण करता रहना पड़ता है। इस प्रकार उनके मुक्ति या वैकुंठलक जाने की संभावना बहुत कम रह जाती है, बिल्कुल ना के बराबर , यही उनकी सबसे बड़ी हानी है।
वे बार बार वैज्ञानिक, दार्शनिक , व्यापारी , अभियंता , चिकित्सक के रूप में जन्म लेते रहते है , और वे निरंतर जन्म मृत्यु के चक्र में फंसे रहते है। इस तरह, प्रकृति के मोह माया में बद्ध रहने के कारण वे सोचते रहते है कि इस तरह का जीवन कितना आनंद दायक है।
रजो गुण
रजोगुण की उत्पत्ति तब होती है, जब मनुष्यों में असीम आकांक्षाओं और तृष्णाओ का वास हो जाता है , और इसी के कारण ये देहधारी जीव सकाम कर्मो से बंध जाता है।
रजोगुण की विशेषता यह है कि इसमें स्त्री तथा पुरुष का पारस्परिक आकर्षण होता है। स्त्री का पुरुष के तरफ और पुरुष का स्त्री के तरफ और ये आकर्षण कभी ख़त्म नहीं होता, इसी को रजोगुण कहते है। यदि किसी मनुष्य में रजोगुण की वृद्धि कुछ ज्यादा ही है तब वो भौतिक भोग के लिए लालायित हो जाता है, जिसमें इंद्रियतृप्ती श्रेष्ठ है।
इस इंद्रियतृप्ति के लिए वो रजोगुणी व्यक्ति समाज में सम्मान चाहता है, एक सुंदर स्त्री , सुंदर संतान , सुंदर परिवार सहित एक अच्छा घर की कामना करता है, जिसमें सरी सुख सुविधा हो।
ये सब रजोगुणी के कर्मो के प्रतिफल के रूप में सामने आते है।
जब तक इंसान में ऐसी लालसा होती है तब तक उसे कठिन परिश्रम करना पड़ता है, ऐसी इच्छा ऐसी लालसा के वजह से मनुष्य इस प्रकार में कर्मो में बंध जाता है।
मनुष्य अपनी स्त्री , संतान समाज को प्रसन्न और देश दुनिया में अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए ऐसा कर्म करता रहता है।
यदि हम आज के वर्तमान समय की बात करें तो हम पाते हैं कि अधिकांश जीव रजोगुण में ही जीवन व्यतीत कर रहे है , सब एक दूसरे को प्रसन्न करने के लिए कार्य कर रहे है। यदि हम इनकी मुक्ति कि बात करें तो इनकी मुक्ति बहुत मुश्किल होती है, क्यूंकि सतोगुण वाले मुक्त नहीं हो पाते तो रजोगुण में मुक्ति का कोई प्रश्न ही भी उठता।
तमोगुण
तमोगुण अज्ञान का एक प्रभाव है, अज्ञान के बजह से उत्पन्न तमोगुण सभी देहधारियों का एक मोह है। इस गुण का प्रतिफल है, पागलपन (प्रमाद), आलस तथा नींद, यही बद्धजीव को बांधते है। तमोगुण व्यक्ति का विचित्र गुण है, ये सतोगुण से पूर्णतः विपरीत है। सतोगुण में व्यक्ति के पास ज्ञान का प्रकाश होता है जिसके वजह उन्हे ये पता होता है, की वो कौन है? और क्यूं है,? उन्होंने जन्म क्युं लिया है?, किन्तु तमोगुण में व्यक्ति में मन पर अज्ञान का अंधेरा होता है, जिसके वजह से से अपने और अपने आत्मा के विषय में कुछ भी नहीं जानते, वे पागलों की तरह व्यवहार करते है, वे सही और ग़लत में फर्क नहीं कर पाते, ऐसे लोग फैसले भी जल्दी नहीं के पाते क्यूंकि वे स्वयं असमंजस में होते है। ऐसे लोग प्रगति के बजाय अवनति को प्राप्त हो जाते है।
ऐसे लोग दूसरो का नुक्सान करने के चक्कर में हर बार अपना ही नुक्सान कर बैठते है।
अज्ञान का पर्दा पड़ जाने की वजह से वे लोग किसी वस्तु को यथारूप में नहीं समझ पाते। ऐसे लोग कुछ अटल सत्य जानते हुए भी वो कार्य करते रहते है जिनका कोई मतलब नहीं होता।
उदाहरण के लिए , हर कोई जानता है, की मृत्यु अटल है, इससे कोई भी बंच नहीं सकता है, कोई भी व्यक्ति यहां से कुछ भी नहीं के जा सकता, फिर भी वो पागलों की तरह निरंतर धन संग्रह करते है।
अपनी आत्मा की चिंता किए बिना अहर्निश कठोर परिश्रम करते रहते है। ये पागलपन ही तो है। अपने इस पागलपन में वे आध्यात्मिक ज्ञान में कोई प्रगति नहीं कर पाते। ऐसे लोग अत्यंत आलसी होते है, जब उन्हें किसी आध्यात्मिक कार्यक्रम के सम्मिलित होने के लिए कहा जाता है, तब वे रुचि नहीं लेते और कोई बहाना बनाकर कार्य को टाल देते है। वे रजोगुणी की तरह भी सक्रिय नहीं होते। इस गुण के लोगो में एक और विशेष बात होती है कि वो आवश्यकता के अधिक सोते है, छः घंटे की नींद प्रयाप्त है किन्तु वे निरंतर दस – बारह घंटे सोते रहते है। ऐसे व्यक्ति सदैव निराश नजर आते है, अंदर से हरे हुए नजर आते है।
ऐसे व्यक्ति भौतिक वस्तु और निंद्रा के प्रति बहुत व्यसनी होते है।
उन्हे कम मेहनत में हमेशा ज्यादा की चाह रहती है।
यही है प्रकृति के नियम, जिससे कोई व्यक्ति बच नहीं सकता।
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मुझे खुशी है, कि आपको ये लेख पसंद आया।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
वाह! क्या विचार अमिव्यक्ति गुणवत्ता है एक शब्द अपने आप में माला में मोती के समान है हर शब्द की अपनी एक प्रभाविकता झलक रही है।
प्रकृति और मनुष्य के संबध को बहुत सुंदर शब्दों को माला में पिरोकर अमिव्यक्त किया है। सतोगुण ,तमोगुण व रजोगुण उदाहरणार्थ अति सुन्दर अभिव्यक्ति है।
nice
Awesome thinking